उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू ने दी दस्तक, एक की मौत; जानिए लक्षण और बचाव

उत्तराखण्ड हेल्थ

देहरादून। प्रदेश में स्वाइन फ्लू ने फिर दस्तक दे दी है। शुरुआत में ही स्वाइन फ्लू का वायरस घातक साबित हो रहा है। मैक्स अस्पताल में भर्ती स्वाइन फ्लू पीड़ित एक मरीज की मौत हो गई है।

61 वर्षीय मरीज देहरादून का रहने वाला था। प्रथम दृष्टया मरीज में स्वाइन फ्लू के लक्षण पाए गए थे। इसके बाद ब्लड सैंपल जांच के लिए दिल्ली भेजा गया। लेकिन जांच रिपोर्ट आने से पहले ही बीती तीन जनवरी को मरीज की मौत हो गई थी।

गुरुवार को दिल्ली के एनसीडीसी लैब से आई मरीज की एलाइजा जांच में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। मरीज मधुमेह से भी पीड़ित था। वहीं, पटेलनगर स्थित श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में कुछ दिन पहले जिस मरीज की मौत हुई थी, उसकी एलाइजला रिपोर्ट निगेटिव आई है। यानी मरीज की मौत का कारण स्वाइन फ्लू नहीं था।

बहरहाल, स्वाइन फ्लू ने राज्य में अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। यहां पर अलग-अलग अस्पतालों में स्वाइन फ्लू से पीड़ित छह मरीज भर्ती हैं। जानकारी के अनुसार मैक्स अस्पताल में एक, सिनर्जी अस्पताल में एक और श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में स्वाइन फ्लू के चार मरीज भर्ती हैं। सभी का चिकित्सकों की निगरानी में उपचार चल रहा है।

वहीं, गुरुवार को मैक्स अस्पताल से दो और मिलिट्री अस्पताल से एक संदिग्ध मरीज का सैंपल भी जांच के लिए दिल्ली भेजा गया है। उधर, स्वाइन फ्लू की दस्तक से स्वास्थ्य महकमे के हाथ-पांव फूल गए हैं।

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने सभी सरकारी व निजी अस्पतालों को एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा कि स्वाइन फ्लू से पीड़ित किसी भी मरीज की जानकारी तुरंत स्वास्थ्य विभाग को दी जाए। मरीजों के उपचार में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती जाए। दून मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल को भी अलर्ट किया गया है।

उन्होंने कहा है कि स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीजों के लिए अलग वार्ड तैयार किया जाए। कई दिन बाद आती है जांच रिपोर्ट स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीजों की जान सांसत में है। एक तरफ मरीज इस बीमारी से लड़ते हैं तो दूसरी तरफ व्यवस्था से।

स्वाइन फ्लू के प्रारंभिक लक्षण के बाद जिन मरीजों के सैंपल जांच के लिए भेजे जाते है, उनपर कई दिन बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती। ऐसे में प्राथमिक लक्षण के अनुसार ही मरीज का उपचार चलता रहता है। राज्य में स्वाइन फ्लू की दस्तक हो चुकी है।

शुरुआती चरण में ही स्वाइन फ्लू एक मरीज की मौत का कारण बन गया है। हैरानी की बात यह कि जब मरीज की मौत हो जाती है, रिपोर्ट उसके बाद आती है। दरअसल, स्वाइन फ्लू की जांच के लिए मरीजों के ब्लड सैंपल दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को भेजे जाते है। यहां से रिपोर्ट आने में कई दिन लग जाते है। इस दौरान मरीज का इलाज संदेह के आधार पर ही होता है।

विगत वर्षो में भी कई मामले ऐसे सामने आए है, जिनमें रिपोर्ट व्यक्ति की मृत्यु के बाद आई। यह हाल तब है, जब श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में आधुनिक लैब उपलब्ध है। इस लैब को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र से मंजूरी भी मिली हुई है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग व अस्पताल के बीच अनुबंध नहीं होने के कारण सैंपल दिल्ली भेजे जा रहे है।

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र में निश्शुल्क जांच की व्यवस्था है, जबकि श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल को एक निश्चित राशि स्वास्थ्य विभाग को देनी होगी। सरकारी सुस्ती का आलम देखिए कि दो साल पहले दून मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल यानी दून अस्पताल में स्वाइन फ्लू की जांच की कवायद शुरू की गई थी, लेकिन इस पर अब तक कुछ नहीं हुआ है।

क्या है स्वाइन फ्लू 

स्वाइन फ्लू, इनफ्लुएंजा (फ्लू वायरस) के अपेक्षाकृत नए स्ट्रेन इनफ्लुएंजा वायरस से होने वाला संक्रमण है। इस वायरस को ही एच1 एन1 कहा जाता है। इसे स्वाइन फ्लू इसलिए कहा गया था, क्योंकि सुअर में फ्लू फैलाने वाले इनफ्लुएंजा वायरस से यह मिलता-जुलता था। स्वाइन फ्लू का वायरस तेजी से फैलता है। कई बार यह मरीज के आसपास रहने वाले लोगों और तीमारदारों को भी चपेट में ले लेता है।

किसी में स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखें तो उससे कम से कम तीन फीट की दूरी बनाए रखना चाहिए, स्वाइन फ्लू का मरीज जिस चीज का इस्तेमाल करे, उसे भी नहीं छूना चाहिए।

स्वाइन फ्लू के लक्षण 

नाक का लगातार बहना, छींक आना कफ, कोल्ड और लगातार खासी मासपेशियों में दर्द या अकड़न सिर में भयानक दर्द नींद न आना, ज्यादा थकान दवा खाने पर भी बुखार का लगातार बढ़ना गले में खराश का लगातार बढ़ते जाना।

ऐसे करें बचाव 

स्वाइन फ्लू से बचाव इसे नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी उपाय है। इसका उपचार भी मौजूद है। लक्षणों वाले मरीज को आराम, खूब पानी पीना चाहिए। शुरुआत में पैरासिटामॉल जैसी दवाएं बुखार कम करने के लिए दी जाती हैं। बीमारी के बढ़ने पर एंटी वायरल दवा ओसेल्टामिविर (टैमी फ्लू) और जानामीविर (रेलेंजा) जैसी दवाओं से स्वाइन फ्लू का इलाज किया जाता है।

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