प्रयाग महाकुंभ के लिए गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ेगा टीएचडीसी

उत्तराखण्ड

ऋषिकेश। प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ में आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। यह बात टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के निदेशक कार्मिक विजय गोयल ने पत्रकार वार्ता में कही।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में टिहरी बांध से मैदानी क्षेत्र के लिए पांच हजार क्यूसेक्स पानी छोड़ा जा रहा है। प्रयाग महाकुंभ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की मांग के अनुरूप अतिरिक्त पानी छोड़ा जाएगा। इस अवधि में सात से आठ हजार क्यूसेक्स पानी की महाकुंभ में मांग को टीएचडीसी पूरा करेगा।

टीएचडीसी के ऑफिसर्स क्लब में गोयल ने बताया कि दिल्ली के 40 लाख लोगों की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही उत्तर प्रदेश के नगरों एवं गांवों के 30 लाख लोगों को टीएचडीसी पानी उपलब्ध करा रहा है। टिहरी बांध के कारण ही मैदानी क्षेत्र में बाढ़ का प्रभाव कम हुआ है।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड को टिहरी बांध से उत्पादित 12 प्रतिशत बिजली निश्शुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। रोजगार सृजन के क्षेत्र में टीएचडीसी ने उत्तराखंड के 70 प्रतिशत लोगों को संस्थान में रोजगार दिया है।

निदेशक कार्मिक के मुताबिक सीएसआर के तहत भी सतत नीति बनाई गई है। जिसके तहत संस्थान सामाजिक उत्तरदायित्व को भी निभा रहा है। इसके लिए सेवा टीएचडीसी और टीएचडीसी एजुकेशन सोसायटी काम कर रही है।

टीएचडीसी के निदेशक तकनीक एचएल अरोड़ा ने बताया टिहरी हाइड्रो पावर कम्प्लेक्स में 24 सौ मेगा वाट विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। टिहरी बांध से एक हजार, कोटेश्वर परियोजना से चार सौ टिहरी पंप स्टोरेज प्लांट से एक हजार मेगा वाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है।

टिहरी पीएसपी, विष्णुगाढ़-पीपलकोटी, ढुकुवा एसएचपी परियोजना निर्माणाधीन है। महाराष्ट्र में दो परियोजनाएं, भूटान में एक और उत्तर प्रदेश के खुर्जा में थर्मल पावर के साथ केरल में सौर विद्युत परियोजना और काम हो रहा है।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के भीतर जहां भी बांध बनाए गए हैं वहां स्थानीय लोगों ने बांध का विरोध नहीं किया है। बल्कि कुछ जगह पुनर्वास व अन्य विषयों पर लोगों ने आवाज जरूर उठाई है। जिसका निस्तारण भी किया गया है। उन्होंने कहा कि बांधों का विरोध करने वाले बाहरी तत्व है। इनमें कुछ लोग सुर्खियां बटोरने के लिए ऐसा करते हैं।

महासीर संरक्षण की दिशा में हो रहा काम

महासीर प्रजाति की मछलियों को पर्यावरण मित्र कहा जाता है। गंगा इनके संरक्षण के लिए काफी अनुकूल है। टीएचडीसी के निदेशक कार्मिक विजय गोयल ने बताया कि गंगा में महासीर मछली की संख्या पहले से कम हुई है। बांध के कारण इनका जीवन प्रभावित ना हो इसके लिए टीएचडीसी महासीर मत्स्य पालन केंद्र का संचालन कर रहा है।

उन्होंने बताया नैनीताल की एक संस्था से विशेषज्ञ बुलाए गए हैं। महासीर के बीज डालकर इन मछलियों का संरक्षण हो रहा है। टिहरी में जहां इस पर काम चल रहा है वहां आसपास के लोगों को भी रोजगार सृजन के लिए मत्स्य पालन से जोड़ा गया है।

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