बर्खास्त कर्मी ने 39 साल बाद 90 की उम्र में जीती न्याय की जंग

उत्तराखण्ड

नैनीताल: बिना नोटिस थमाए सीधे बर्खास्त किए गए कर्मचारी को चार दशक बाद आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय मिल गया। कोर्ट ने चार सप्ताह में पेंशन संबंधी लाभ देने और एरियर का नौ फीसद ब्याज के साथ भुगतान करने के आदेश दिए हैं।

मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर अंतर्गत रनमन गांव निवासी चंदन सिंह खड़ाई अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में रेशम विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मी थे। उनकी तैनाती रामपुर जिले में थी, जब 1979 में वह बीमार पड़ गए और ड्यूटी पर नहीं जा सके।

इस पर विभाग ने बिना प्रार्थना पत्र दिए अवकाश पर रहने को लापरवाही मानते हुए उन्हें सीधे बर्खास्त कर दिया। चंदन ने विभाग के आदेश को पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल, लखनऊ में चुनौती दी तो 2004 में ट्रिब्यूनल ने अर्जी खारिज कर दी। ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ चंदन सिंह ने हाई कोर्ट में विशेष अपील दायर की।

2005 में खारिज किया था ट्रिब्यूनल का आदेश  

नैनीताल हाई कोर्ट के जस्टिस पीसी वर्मा व जस्टिस बीएस वर्मा की खंडपीठ ने पांच मई 2005 को चंदन की विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल का आदेश खारिज करते हुए याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही याची को रिटायरमेंट की स्थिति के लिए डेढ़ लाख के एरियर के साथ ही पेंशन लाभ देने के आदेश दिए।

जब विभाग ने आदेश नहीं माना तो चंदन ने अवमानना याचिका दायर कर दी। इस पर विभाग ने उन्हें डेढ़ लाख का चेक दे दिया, मगर पेंशन नहीं दी। इसके बाद अवमानना याचिका खारिज हो गई।

सुप्रीम कोर्ट से हारा विभाग, पर आदेश दबाया 

नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ रेशम विभाग ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। विभाग सुप्रीम कोर्ट में केस हार गया, मगर आदेश दबाए रखा। इधर, चंदन सिंह की ओर से फिर से पेंशन के लिए याचिका दायर की गई।

याची की ओर से अधिवक्ता विनोद तिवारी ने दलील दी कि विभाग ने बिना कारण बताओ नोटिस दिए बर्खास्तगी की कार्रवाई की। साथ ही आदेश के बाद भी पेंशन का लाभ नहीं दिया। वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद विभाग को चार सप्ताह में पेंशन के लाभ के साथ ही नौ फीसद ब्याज के साथ एरियर का भुगतान करने के आदेश जारी किया।

आहत चंदन बन गए बाबा 

विभाग की तिकड़म तथा दूसरी दिक्कतों की वजह से चंदन बाबा बन गए। वर्तमान में वह बेलबाबा मंदिर फुटकुआं हल्द्वानी में रहते हैं। उनका बेटा महेश भी उनके साथ रहता है, जबकि महेश का परिवार गांव में है। व्यवस्था से आहत चंदन की आयु अब 90 साल है। वह बताते हैं कि, ‘मैने संकल्प लिया था जब तक न्याय की जंग नहीं जीत लूंगा, ना चप्पल पहनूंगा और ना ही चाय पीऊंगा।’

उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे चंदन ने न्याय मिलने से खुशी जताई है, मगर चप्पल पहनने से अब भी इनकार कर दिया। कहा कि इतने समय तक नहीं पहना तो अब पहन के क्या करुंगा। चंदन के बेटे महेश सिंह के अनुसार उनकी दो विवाहित बहनें हैं। पिता ने मंदिर से ही दोनों बहनों की शादी की। मंदिर में पुजारी के साथ ही सेवादार भी हैं।

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