हरिद्वार । मानव अधिकार संरक्षण समिति के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री हेमन्त सिंह नेगी ने बेटी दिवस के अवसर पर कहा कि भारत में बेटी दिवस मनाने की एक खास वजह बेटियों के प्रति लोगों को जागरुक करना। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि बेटी को न पढ़ाना, उन्हें जन्म से पहले मारना, घरेलू हिंसा, दहेज और दुष्कर्म से बेटियों को बचाने के लिए भारतीयों को जागरुक करना है। उन्हें यह समझाना कि बेटियां बोझ नहीं होती, बल्कि आपके घर का एक अहम हिस्सा होती हैं।
पहले के जमाने में लड़के होने पर खुशियां और लड़की होने पर मातम जैसा माहौल बना दिया जाता था। हालांकि, देश के कई हिस्सों में आज भी बेटियों को कलंक मान कर उनकी अनदेखी की जाती है और सही से पालन पोषण नहीं किया जाता है। इसी विचारधारा को मिटाने के लिए बेटी दिवस (डॉटर्स डे) मनाने की परंपरा शुरू की गयी। ताकि लड़कियों के साथ हो रहे इस भेदभाव के खिलाफ जागरूकता बढ़े और लिंग के बीच समानता को बढ़ावा मिले। बेटियों के लिए समय जरूर निकाले। उनके साथ अपना गुणवत्ता समय बिताएं और उन्हें स्पेशल फील करवाएं। उन्हें यह भी बताएं कि वे लड़कों से कम नहीं हैं और आपके जींदगी के लिए क्यों जरूरी है। उन्हें एहसास करवाएं कि आप बेटे तथा बेटियों को कैसे समान रूप से प्यार और सम्मान करते हैं। साथ ही साथ उनकी इच्छाओं पर अंकुश न लगाएं। इसके बजाय, उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करें और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रेरित करें। राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री ने कहा कि घर की रौनक और शान होती हैं बेटियां। परिवार पर अपनी जान तो लुटाती ही हैं। साथ में किसी गलती पर हक से डांटने का अधिकार भी बेटियों को ही ज्यादा होता है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि ‘बेटियां सब के मुकद्दर में कहां होती हैं, घर खुदा को जो पसंद आए वहां होती हैं।’ भारत के लिहाज से बेटी दिवस का अलग महत्व है। आज भले ही हमारे समाज में बेटियों को बराबरी का दर्जा हासिल है, लेकिन एक वक्त था जब बेटियां को बोझ समझा जाता था। बचपन में ही उनके हाथ पीले कर दूसरे घर भेज दिया जाता था। उनकी भूमिका सिर्फ रसोई घर तक सीमित थी। आज भी कई परिवारों में ऐसा ही है, लेकिन एक बड़े तबके की सोच बदल चुकी है। इसलिए बेटी दिवस का बड़ा महत्व है।